नमस्कार दोस्तो, आप सबको मालूम ही है आजकल हरियाणा की राजनीति मे एक मुद्दा गर्माया हुआ है वो मुद्दा है विकास बराला के द्वारा वर्निका कुंडू का पीछा कर छेडछाड करने का।
वर्निका कुंडू ये नाम अब राष्ट्रीय मीडिया मे उछल रहा है, उछलना भी चाहिए इस बहन ने अपने साहस का परिचय देते हुये उसके साथ छेड़छाड-पीछा करने वालो को पुलिस के घेरा मे पहुंचाया। लेकिन वर्निका कुंडू ने अपनी सभी मीडिया स्टेटमेंटस् मे कहा कि वो पहले से ये नही जानती थी कि वो लडका बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष का लडका है और साथ मे पुलिस ने भी मीडिया मे बोलते हुये अपना पक्ष रखा और कबूला कि वो भी पहले नही जानते थे कि ये राजनीतिक परिदृश्य से संबंधित शख्स है। एक बात तो साफ है कि पुलिस ने बिना जानकारी होते हुये मामले को गंभीर समझते हुये अपहरण की कोशिश की गैर-जमानमती धारा के साथ तहकीकात शुरू की। लेकिन राजनीति परिदृश्य के स्पष्ट होते ही मामला बदल गया और गैर-जमानती धाराओं को बदलते हुये जमानती धारा मे प्रवर्तित कर विकास बराला और उसके दोस्त को निजी मुचलके पर जमानत दे दी गई। हम सबको पुलिसिया कारवाई पर विश्वास रखना चाहिए लेकिन सबको पता ही है जब मामला हाई-प्रोफाइल हो जाता है तो हर तरफ से राजनीतिक पार्टियों की साख का सवाल हो जाता है और जब मामले मे सत्ताधारी पक्ष से संबंधित व्यक्ति घेरे मे हो तो फिर अफसरशाही पर दबाव बनना शुरू होता है और जिस तरां से आज हर पार्टी की तरफ से और पुलिस की तरफ से प्रैस-कांफ्रैस चली तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि वर्निका कुंडू का मामला किस हद तक मीडिया मे और राजनीतिक परिधि मे घूम रहा है। इस मामले को लेकर मुझे काफी खुशी हुई कि भारतीय मीडिया ने उन सभी लगने वाले दागों को दूर कर वर्निका कुंडू के पक्ष मे खडी हुई जो सत्तापक्ष का पक्ष लेने का हर विपक्षी पार्टी लगाती है।
अगर स्वतंत्र रूप से इस मुद्दे को राजनीतिक रंग देकर देखा जाये तो ये मुद्दा अब बीजेपी के लिये राजनीतिक परिदृश्य मे बहुत घातक सिद्ध होने वाला है इसके पीछे एक कारण यह भी कहा जा सकता है जिस तरां से धाराओं की अदला-बदली हो रही है कभी गैर-जमानती तो फिर जमानती उससे राजनीति दबाव जरूर दिख रहा है, राजनीतिक दवाब दिखे भी क्यूं ना सत्तापक्ष के प्रदेशाध्यक्ष का बेटा जो केस मे फंसा है। लेकिन बीजेपी और मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर राजनीतिक दबाव की बात को बिलकुल नकार चुके हैं और कह रहे हैं कि निष्पक्ष जांच होगी, परन्तु भारतीय राजनीति के पिछले दौर को देखते हुये लगता नही की जांच निष्पक्ष होगी? निष्पक्ष जांच को साबित करने के लिये सत्तापक्ष की तरफ से प्रवक्ता छाती ठोक कर कह रहे हैं कि हरियाणा सरकार चंडीगढ मे राजनीति दबाव कैसे बना पायेगी चंडीगढ तो केन्द्रशासित प्रदेश है उसमे हरियाणा राज्यसरकार कैसे हस्तक्षेप करेगी? मगर वो साथी ये भूल जाते हैं कि इस वक्त केन्द्र की सत्ता मे भी वो ही पार्टी काबिज है जिसके प्रदेशाध्यक्ष के बेटे पर ये आरोप लगे हैं। मुद्दा अब पूरे देश मे गूंज रहा है और केन्द्र की तरफ से भी इसमे हस्तक्षेप की संभावनाये बढ गई हैं क्यूंकि सत्ता मे बैठी कोई भी पार्टी अपनी फजीहत नही करवायेगी। इस मामले मे राजनीतिक दबाव के शक को मजबूत करने का काम 6सीसीटीवी का खराब होने की खबर जब राष्ट्रीय मीडिया मे घूमना शुरू करती है, शक जायज भी है कैसे उसी रास्ते के सीसीटीवी कैमरों की सीसीटीवी फुटेज गायब हो जाती है उन सीसीटीवी कैमरों को खराब ठहरा दिया जाता है। हम सब भारतीय राजनीति से भली-भांति परिचित भी हैं कि कैसे-कैसे हाई-प्रोफाइल मामलों को दबाने का प्रयास होता है, अभी तक इस मामले मे शिकायतकर्ता पर राजनीतिक दबाव बनाने का कोई बयान नजर नही आया लेकिन इस मामले को मीडिया ने उठाया हुआ है मीडिया के सवाल जायज भी हैं कि कैसे गैर-जमानती धाराओं को बदलकर जमानती कर निजी मुचलके पर जमानत दे दी गई?
इस मामले मे बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष सुभाष बराला के बेटे का नाम जैसे ही मीडिया मे चलने लगा तो विरोधी दलों द्वारा इस मामले को उठाकर माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा हरियाणा से ही शुरू किये गये "बेटी बचाओ बेटी पढाओ" अभियान को भी घेरे मे लेकर केन्द्रीयस्तर तक इस मामले को ज्वलनशील बना दिया है इस मामले पर अब पूरे देश की नजर तो टिकी ही है लेकिन इस मामले पर सभी राजनीतिक दलों के द्वारा अपना राजनीतिक फायदा भी ढूंढा जा रहा है। आपको भूतकाल मे लेकर जाता हूं कि दिल्ली के निर्भया कांड ने कैसे सत्ताधारी दल को कुर्सी से उतारा था ये छेडखानी का मामला भी महिलाओं के खिलाफ बढ रहे अपराधों मे ही आता है विपक्षी दलों को सत्तापक्ष को घेरने का मौका भी दे रहा है। विपक्षी दल प्रैस-कांफ्रैस कर "बहुत हुआ नारी पर वार, अबकी बार मोदीसरकार" वाले वादे को याद करवा सत्ता पक्ष को घेर रहे हैं। घेरने वाला मामला भी है क्यूंकि सरकार महिला सुरक्षा के नाम पर सत्ता मे आई थी। जब सरकार के ही किसी विधायक का बेटा लडकी का पीछा कर अगवा करने की कोशिश करे तो दिल को धक्का सा लगता है कि देश किस तरफ जा रहा है। मैं सुभाष बराला को सिर्फ विधायक इस लिये ही कह रहा हूं क्यूंकि मैं किसी राजनीतिक दल को सत्ता मे होते हुये उसके अध्यक्ष से ज्यादा जवाबदेह मुख्यमंत्री व सरकार मे चुने प्रतिनिधियों को मानता हूं।
मुझे ये कहते हुये खुद असहज सा महसूस कर रहा हूं कि वर्निका कुंडू का ये मामला अब भाजपा व अन्य विपक्षी दलों के लिये एक राजनीतिक मौका बन गया है। मैंने इसे राजनीतिक मौका कहते हुये असहज सा इस लिये महसूस किया क्यूंकि एक बेटी एक बहन ने खुद को असुरक्षित महसूस करते हुये इस मामले को पुलिसिया कारवाई के दायरे मे लाया। अब इस मामले मे हर दल अपनी-अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने मे लगा है और जो इस मामले संलिप्त दल है वो खुद की सिंक रहे रोटी को सत्ता रूपी तवे से उतरने से बचा रहा है।
मुझे ये कहते हुये कोई आश्चर्य नही होगा कि अगर बीजेपी ने इस मामले पर इसी प्रकार से अपना रूख अख्तियार रखा तो ये बीजेपी के लिये बहुत घातक सिद्ध होगा। बीजेपी को अपने राजनीतिक भविष्य की डगर पर बिना डगमगाये चलने के लिये इस मामले को राजनीतिक दबाव से दूर रख जांच करवानी चाहिए और अपने प्रदेशाध्यक्ष सुभाष बराला से नैतिकता के आधार पर इस्तीफा लेकर खुद को एक नैतिकता से परिपूर्ण पार्टी साबित करना चाहिए।
मुझे मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के उस बयान को सुनकर थोडा आश्चर्य हुआ जिसमें वो कह रहे थे कि आरोपी को सजा मिलेगी लेकिन जो सुभाष बराला इस मे शामिल ही नही वो इस्तीफा नही देंगे। मुख्यमंत्री जी को मामले को गंभीरता से लेते हुये सुभाष बराला का नैतिकता के आधार पर इस्तीफा लेना चाहिए था क्यूंकि आरोपी सुभाष बराला का बेटा है और नैतिक तौर पर सुभाष बराला का इस्तीफा बनता है।
मुझे मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के उस बयान को सुनकर थोडा आश्चर्य हुआ जिसमें वो कह रहे थे कि आरोपी को सजा मिलेगी लेकिन जो सुभाष बराला इस मे शामिल ही नही वो इस्तीफा नही देंगे। मुख्यमंत्री जी को मामले को गंभीरता से लेते हुये सुभाष बराला का नैतिकता के आधार पर इस्तीफा लेना चाहिए था क्यूंकि आरोपी सुभाष बराला का बेटा है और नैतिक तौर पर सुभाष बराला का इस्तीफा बनता है।
अपनी राजनीतिक विचार ऊपर लिखने के बाद मैं कुछ पंक्तियां बहन वर्निका कुंडू की हिम्मत की प्रशंसा करते हुये लिख रहा हूं।
"वो बेटी बडी बहादुर जो बच गई इन आरोपियों से बन चतुर, वो बेटी बडी बहादुर जो लड पडी इन सत्ताधारीयों से बन बहादुर, ताकते-मिशाल अब वर्निका तेरी होगी बस तूं लड बिना झुके अब वर्निका जीत भी तेरी होगी, संग उठ खडा हुआ मीडिया अब देश की हर शख्सियत संग तेरे होगी, ना झुकना किसी दबाव मे ना रूकना हवा के झोंकों से अब हर बेटी बच निकलेगी ऐसे डरभरे मौकों से, अब ना झुकना तूं वर्निका अब तूं ही हर बहन-बेटी की हिम्मत होगी, यूं ही रहना डटे सत्ता के लिये ये पल जलालत-ऐ-जिल्लत होगी"
इन्ही पंक्तियों के संग विदा लेता हूं, फिर मिलूंगा संसारिक परिदृश्य मे तैरते हुये मुद्दे के संग।
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